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Malu Lata Kachnar मालू लता काचनार

मालू/ लता काचनार

नमस्कार दोस्तो आज फिर आपके लिए लेकर आया हूं एक और वनस्पति। ये वनस्पति आप चाहे कही भी रहे हो लेकिन लगभग सभी ने प्रयोग की होगी जो एबीएस लगभग डेढ़ दशक पहले के होंगे। अक्सर शादी ब्याह या किसी भी घर मे होने वाले कार्यक्रमो में। इसका शुद्ध माना जाता है इसलिए इसका उपयोग पूजा में रखे जाने वाले समान को रखने के लिए भी किया जाता है।
क्या आप जानते है पहले के लोग सौ साल और उससे अधिक कैसे जी लिया करते थे, क्योकि वो प्राकृतिक रूप से मिले पानी, भोजन, वनस्पति का ही भोग किया करते थे और, जिसे आज हम विकास समझ रहे है वो विकास नही बल्कि विनाश है, ऐसे विकास से कोसो दूर थे वो लोग। आज के समय मे भोजन मॉर्डन हो चुका है, प्रदूषण भरा जीवन हो गया खेती में रासायनिक खादों का उपयोग इन्ही कारणों से हमारे हाथों से जीवन रेखा भी धीरे धीरे धुंधली होती जा रही है। दोस्तो जितना हो सके प्राकतिक चीज़ों को उपयोग में लाये और इनके महत्व को समझे।
दोस्तो जल्द ही मैं इन सभी लेखों पर एक वीडियो सीरीज भी लाने वाला हूं हमारे यूट्यूब चैनल
youtube.com/khudeddandikanthi
दोस्तो अभी आप चैनल पर सिर्फ उत्तराखण्डी गीत और कविताएं उपलब्ध है आगे से इस चैनल पर इन दुर्लभ वनस्पतियो की जानकारी भी मिलेगी। वीडियो आप तक पहुँचे इसके लिए आप हमारे चैनल को सब्सक्राइब करके घंटी वाले बटन को जरूर दबाए।
आज का विषय है एक ऐसी वनस्पति जिसके पत्तो पर खाना रखकर खाने मात्र से भी कितने ही रोगों का निवारण हो जाता है। जिन्होंने इसका उपयोग किया होगा वो समझ चुके होंगे कि मैं किस वनस्पति की बात कर रहा हूं, और जो अभी तक भी नही समझ पाए है उनको भी बता दू आज मैं बात कर रहा हूं मालू की जिसे हिंदी में लता काचनार। मालू फैबैसी कुल का पौधा है।
दोस्तो यदि आपने लगभग डेढ़ दो दशक से पहले शादी ब्याह देखे होंगे और यहाँ पूजा पाठ से लेकर खाना परोसने के पत्तल तक देखे होंगे तो यह सब मालू के पत्तो से ही तैयार किये जाते थे। पहाड़ो में मालू और तिमला के पत्तो का ही प्रयोग किया जाता था पत्तल और डोने के लिए।
किसी ब्लॉग पर मैंने यह भी पढ़ा है कि शहर में होटल खोलने वाले राम सिंह रावत(जिन्हें मैं नही जानता) ने जब मालू के पत्तल मार्किट में तलाशे तो उन्हें नही मिले जबकि इसके विपरीत प्लास्टिक या थर्माकोल के हर जगह उपलब्ध थे। काफी तलाशने के बाद उन्हें केले के तने की छाल से निर्मित दोने पत्तल मिले। और अब वो होटल में इन्ही का उपयोग करते है, यदि उनको मालू के पत्तल मिल जाते तो क्या वो उसका उपयोग नही करते किन्तु सभी आधुनिकता की ओर दौड़ में शामिल है। यही पत्तल आदि उपयोग के बाद खाद का काम भी कर सकते है। मालू का पौधा जल तथा मृदा संरक्षण के लिए लाभकारी बताया जाता है। मालू हर प्रकार से उपयोगी है इसके औषधीय गुणों के बारे में आगे चर्चा करेंगे, अभी हम इसके घरेलू उपयोग की बात करते है। मालू की सूखी लकड़ी ईंधन के काम आती है, इसकी छाल से चटाई आदि बनायी जाती है। इन पत्तलों में खाना खाने का एक अलग ही आनंद हुआ करता था। कई जगहों पर तो किसी शादी ब्याह से पहले से पत्तल दौनो का निर्माण कार्य शुरु हो जाता था लेकिन अब तो सबकुछ शॉटकट होता जा रहा है।
आपको जानकर हैरानी होगी जहा हम लोग इसके महत्व को भूलते जा रहे है वही दूसरी ओर पश्चिमी देशों में लोग स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो रहे है और वो लोग इसका प्रयोग पत्तल आदि के रूप में कर रहे है।
जर्मनी में इससे बनी पत्तल को नेचुरल लीफ प्लेट के नाम से जाना जाता है और युवाओं में खूब रुचि देखने को मिल रही है। जहां हमने अपने इस पारम्परिक व्यवसाय को खत्म कर दिया वही जर्मनी में इसे लेकर एक बड़े व्यवसाय ने जन्म ले लिया है। वहा इससे निर्मित पत्तलों आदि का प्रयोग होटलों में भी किया जा रहा है। यह एक फैशन बन चुका है। यूरोप में बहुत से बड़े होटलों में इन पत्तलों का भारी मात्रा में आयात भी किया जाता है। उत्तराखण्ड में मालू के पत्तो को आग में पकाकर खाया जाता है।
मालू उत्तराखण्ड के अलावा पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, सिक्किम आदि में भी उपलब्ध होता है।

औषधीय गुण

मालू के पत्तो में एन्टीबैक्टीरियल गुण मौजूद होते है। यदि पुराने समय की बात करे तो इसका प्रयोग बुखार, अतिसार व टॉनिक के रूप में उपयोग में लाया जाता था।
आयुर्वेदाचार्य डॉ. सुशांत मिश्रा के अनुसार मालू के पत्तो का काढ़ा यदि जिसके शरीर मे गांठे बनती हो उसको दी जाए तो गांठो से निजात पाया जाता है। खांसी, जुकाम में भी मालू के पत्ते उपयोगी है पाचनतंत्र को भी स्वस्थ बनाए रखते है मालू के पत्ते।
मालू में महत्वपूर्ण रासायनिक अव्यव उपलब्ध होते है जिनमे Betulinic acid, Flavonoids, Triterpene, Gallic Acid है। इसमें लिपिड  23.26, प्रोटीन  24.59 और फाइबर  6.21 प्रतिशत तक होते है।
यदि इन वनस्पतियो की तरफ सरकार का ध्यान जाए तो काफी अधिक मात्रा में पलायन को रोका जा सकता है। साथ पहाड़ो में बिखरी हुई खेती है जिस कारण से बड़े स्तर पर बागवानी या इस तरह का रोजगार करना मुश्किल हो जाता है, यदि चकबन्दी होती है तो इन बिखरे खेतो के बदले एक, दो या तीन चको में भी यदि हमें हमारे सभी खेत मिल जाये तो इस तरह के बड़े प्रोजेक्ट पर किसान काम कर सकते है और साथ ही देखरेख भी आराम से कर सकते है।
दोस्तो अगले अंक में फिर एक और वनस्पति के साथ एक नए लेख के साथ आपके बीच आऊंगा तब तक आप ब्लॉग को पढ़ते रहे अपने सुझाव देते रहे और हमारे इन लिंक्स को देखे यदि किसी प्रकार की जानकारी मेरे द्वारा रह गयी हो तो उसे पूरा करने में अपना सहयोग अवश्य दे।

कुछ पुराने लिंक:-

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किलमोड़ा                  घिंगरु                    भमोरा                       डैकण/डकैन              तिमला

अनोप सिंह नेगी (खुदेड़)
9716959339

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