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Crataegus घिंघारू घिंगरु

घिंगरु,  घिंघारू, हिमालयन रेड बेरी Crataegus वैज्ञानिक नाम Pyracantha Crenulata

दोस्तो इन लेखों को लिखते हुए कभी कभी बहुत अजीब लगता है, क्योकि आआजकल मैं जिन वनस्पतियों के बारे में लिख रहा हूं ये ऐसी वनस्पति है, जिन्हें उत्तराखण्ड में उपेक्षित किया जाता है। जबकि ये वनस्पतियां औषधीय गुणों से भरपूर है। उत्तराखण्ड जड़ी बूटियों वाला एक ऐसा प्रदेश है यदि इन्हें रोजगार से जोड़ दिया जाए तो हम लोग जो पहाड़ो को छोड़कर शहरो में पलायन कर आते है ऐसा नही होगा, बल्कि अन्य प्रदेशों से यहाँ लोग रोजगार की तलाश में आएंगे। दोस्तो आज भी एक ऐसी ही जंगली वनस्पति लेकर आया हूं जो अपने औषधीय गुणों के लिए विज्ञान में जाना जाता है। रोसेसि प्रजाति का एक कांटेदार पौधा है। यह पौधा प्रयः हिमालयी क्षेत्रो में लगभग 800 से 2500 मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है। बचपन मे इसके रसदार मीठे फलो का स्वाद मैंने तो बहुत लिया है और शायद आपने भी खूब स्वाद लिया होगा। हम इसे छोटा सेब भी कहा करते थे। दोस्तो उत्तराखण्ड के एक गढ़वाली गीत में नेगी जी ने इसका जिक्र कुछ इस प्रकार किया है:-
"आरु घिंगारु की दाणी खै जा" शायद आप अब समझ गए होंगे कि मैं किस वनस्पति की बात कर रहा हूं। जी हां दोस्तो आप सही समझे है मैं हिमालयन रेड बेरी की ही बात कर रहा हूं जिसे उत्तराखण्ड में घिंगरु के नाम से जाना जाता है। Cardio tonic के नाम से भी घिंघारू को जाना जाता है। इसकी कुछ खासियत है जैसे यह पौधा एक बार होने के बाद सालो साल रहता है, यह पथरीली बंजर भूमि पर बहुत ही आसानी से उग जाता है। इसके एक अध्ययन में यह भी पता चला है कि घिंगरु में सूखा सहन करने की काफी क्षमता होती है, यह 0 से 35 डिग्री सेल्सियस तक आसानी से रहता है, और यह कम नमी वाली जगह पर भी आसानी से हो जाता है। उत्तराखण्ड में किसान इसकी झाड़ियों का प्रयोग अपने खेतों में बाड़ करने, इसकी टहनियों और तनों से डंडे बनाने, या अपने औजारों के हत्थे बनाने के उपयोग में भी लाते है। दोस्तो चीन में घिंघारू को हॉथोर्नक, टिगस ऑक्जिकैंथ या टिगज़ मोनोजीना के नाम से भी जाना जाता है। घिंघारू एक बेहद ही पौष्टिक और औषधीय गुणों से परिपूर्ण फल है, जो कि हाइपरटेंशन, रक्तचाप, मधुमेह, हृदय से संबंधित बीमारियों में काम आता है। दोस्तो इसकी पत्तियों में एन्टीऑक्सीडेंट व एन्टीइन्फ्लामेट्री गुण विद्यमान होते है, इस कारण इसकी पत्तियों का प्रयोग हर्बल चाय के रूप में भी किया जाता है। विटामिन प्री-बायोटिक्स, प्रो- बायोटिक्स, खनिज लवण, न्यूट्रास्युटिकल, आदि गुण घिंघारू में भरपूर मात्रा में उपलब्ध होते है। इसके फल में Flavonoids तथा Glycosides के कारण इसमें inflammatory गुण पाए जाते है। घिंगरु रक्तचाप को मेंटेन रखने में सहायक होने के साथ साथ रक्त से नुकसानदायक कोलेस्ट्रॉल को भी कम करने में काफी सहायक होता है। दोस्तो आपको बता दु कि Defence Institute of Bioenergy Research Field Station, पिथौरागढ़ ने हृदय रोगों के लिए एक हृदय अमृत औषधि तैयार की है। घिंघारू कि पत्तियों को Gingkago Biloba के साथ प्रतिदिन खाने से स्मरणशक्ति को बढ़ाने में मददगार सिद्ध होता है।
दोस्तो इसके फल की पौष्टिकता की यदि बात करे तो वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार 500 ग्राम फल में इतने पौष्टिक तत्व होते है जितने कि एक दिन में एक व्यक्ति के लिए होने चाहिए। इसमें प्रोटीन 5.13%, वसा 1.0%,  फाइबर 7.4%,  कार्बोहाइड्रेट 24.98%, और विटामिन सी 57.8 मिलीग्राम, विटामिन ए 298.6 IU, विटामिन बी12  110 माइक्रोग्राम, विटामिन ई 298 मिलीग्राम, कैल्शियम 37.0 मिलीग्राम, पोटेशियम 13.9 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम तक पाए जाते है।
18वी शताब्दी में एक अमेरिकन डॉक्टर ने घिंघारू को Cirulatory Disorder व Cardic Disorder के  उपचार के लिए पहचान लिया था।
पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए भी इसके फलो के रस का उपयोग किया जाता है। इसकी पत्तियों का उपयोग कॉस्मेटिक वस्तुएं बनाने में भी किया जाता है। घिंगरु की छाल का काढ़ा भी स्त्री मासिक धर्म मे अत्यधिक रक्तस्राव से निजात दिलाने में उपयोगी होता है। जब इसकी पत्तियां सड़कर जमीन पर गिरती है या हम इन्हें खेतो में डालते है तो यह मिट्टी की उर्वरक शक्ति को बढ़ाने में सहयोगी होती है।

पिछले अंक में हमने पढ़ा किंगोड़ के बारे में आगे आने वाले अंक में हम बात करेंगे भमोरा की। 

अनोप सिंह नेगी (खुदेड़)
9716959339

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