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Hisalu Rebus Elipticus हिंसर, हिसालू

नमस्कार दोस्तो आज का लेख कुछ लम्बा हो सकता है इसका कारण है।
मैं काफी समय से उत्ताखण्ड कि वनस्पतियों पर लेख लिख रहा हूं और इनमें ऐसे ऐसे जंगली फूल और फलों पर भी लिखने का प्रयास करता हूं। मैंने पाया कि जितने भी जंगली फल उत्ताखण्ड में स्वतः ही उग जाते है उनकी हम बिल्कुल भी कद्र नही करते। इनको रोजगार की दृष्टि से कभी न देखते हुए इनको झाड़ या काटे समझकर काट फेकते है। लेकिन आज मैं जिस जंगली फल की बात कर रहा हूं आप इसी से अंदाजा लगा लेंगे कि हम सदियों से अपना कितना नुकसान किये जा रहे है।
उत्ताखण्ड ऐसी जड़ी बूटियों फल फूल और ऐसे ही कई वनस्पतियों से परिपूर्ण है किंतु हम इनका सही उपयोग नही करते। आज जिस फल के बारे में मैं लिख रहा हूं इसका पूरे विश्व मे लगभग 580 टन उत्पादन किया जाता है, जबकि इस फल का उदगम ऐसिया से ही हुआ है। किन्तु भारत का इस लिस्ट में कही भी नाम नही है जबकि भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में यह स्वतः ही उग जाता है, चाहे उत्तराखण्ड हो हिमाचल हो सिक्किम हो हर पहाड़ी क्षेत्रों में यह फल पाया जाता है।
अब बात करते है इस फल के बारे में दोस्तो यह एक जंगली कांटेदार पौधा है, बहुत ही छोटे कांटेदार इस पौधे पर खट्टे-मीठे छोटे-छोटे बॉल के आकार के समूहों में इसपर एक फल लगता है और ऐसे ही कई गुच्छे इसपर होते है। यदि आपने गांव का जीवन जिया है तो जरूर सेवन किया होगा। अक्सर छोटे बच्चे या स्कूली बच्चे इसका खूब आनंद लेते है। दोस्तो मैं बात कर रहा हूं हिमालयन रसबेरी की, येल्लो रसबेरी, अनसेलर अर्थात हिसालू, हिंसर की इसका वैज्ञानिक नाम है रुबस इलिप्टिकस(Rubus Elipticus)। Rosaceae ,प्रजाति की की वनस्पति है। विश्व मे इसकी लगभग 1500 प्रजातियां पायी जाती है, इसमें से विश्व की 70% प्रजाति सिर्फ दक्षिण पश्चिम चीन में पायी जाती है।
यह ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम, मॉरीशस, नेपाल, पाकिस्तान, पोलैण्ड, सर्बिया, रूस, मेक्सिको तथा फिलीपींस आदि देशों में भी पाया जाता है। हिसालू में एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है। सेहत की दृष्टि से देखे तो यह बहुत से रोगों के उपचार के लिए बहुत ही फायदेमंद औषधि है, जैसे ट्यूमर, घावों को भरने, पेट दर्द बुखार जैसे बहुत से अन्य रोगों में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसकी खासियत यह है कि इसकी छाल, जड़े, फल, और पत्तियां सभी किसी न किसी रोग के उपचार में काम आते है। इसकी जड़ो को कंडाली(बिच्छू घास) की जड़ो व जरुल की छाल के साथ कूटकर काढ़ा बनाकर बुखार में दिया जाए तो बहुत फायदेमंद होता है। हिंसर के फलों के रास को पेट दर्द, बुखार, खांसी, गले के दर्द आदि में प्रयोग किया जाता है। यदि बात करे इसकी पत्तियों की यदि इसके पत्तियों को Centella asiatica और Cynodon dactylon के साथ मिलाया जाए तो यह Peptic Ulcer जैसे योग के निवारण में बेहतर औषधि है। Applied and Natural Resources Journal ke 2016 के अध्ययन के अनुसार हिसालू में 49-5µg/ml Antioxidant की मात्रा पाए जाने के कारण इसका उपयोग कैंसर संबंधी रोग के उपचार के लिए भी इससे औषधि तैयार की जा रही है।
हिसालू में पोषक तत्वों की कोई कमी नही है इसमें कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम मैग्नीशियम, आयरन, जिंक, पोटेशियम, सोडियम व एसकरविक एसिड प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। इसमें विटामिन सी  32 प्रतिशत, फाइबर 26 प्रतिशत, मैंगनीज़ 32 प्रतिशत, व मुख्य रूप से में low-glycemic जिसमे की शुगर की मात्रा सिर्फ 4 प्रतिशत तक ही पायी गयी है।
औद्योगिक रूप में भी हिंसर का उपयोग किया जाता है, विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थो के निर्माण में इसका उपयोग किया जाता है जैसे जैम, जैली, विनेगर, चटनी व वाइन आदि में। साइट्रिक एसिड, टाइट्रिक एसिड, का काफी अच्छा स्रोत इसे माना गया है।
यह पहाड़ी क्षेत्रों में मई जून के महीने में काफी मात्रा में पाया जाता है समुद्र तल से 750  से 1800 मीटर की ऊँचाई पर होता है।
अब यदि हिंसर के उत्पादन की बात करे तो जैसा कि मैंने ऊपर बताया लगभग 580 टन उत्पादन विश्वभर में किया जाता है जिसमे लगभग 143 टन रूस अकेले कर रहा है, 121 टन पोलैंड, 68 टन सर्बिया, 91 टन यूनाइटेड स्टेट्स, 30 टन मेक्सिको व अन्य देशों द्वारा उत्पादित किया जा रहा है।

यदि इसमें इतने गुण है तो क्या हम इसे खेती की दृष्टि से देखे और रोजगार से जोड़े तो क्या यह सही विकल्प होगा। क्या ऐसी ही वनस्पतियों को यदि रोजगार से जोड़ा जाए तो कुछ तो फायदे होंगे।
ऐसी वनस्पतियों को यदि रोजगार से जोड़े तो शायद इसमें मेहनत भी कम हो सकती है क्योंकि यह स्वतः ही पैदा हो जाने वाली जंगली वनस्पति है।
आपको यह लेख कैसा लगा अपने सुझाव अवश्य दे। जल्द ही किंगोड़ पर लेख आपके सामने लेकर आऊंगा।

अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339

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